आशा दशमी 2024 ..
धार्मिक मान्यता -इस व्रत को पूर्ण करने से कन्या श्रेष्ठ व प्राप्त करती है पति के यात्रा प्रवास पर जाने और जल्द लौट करना आने पर स्त्री इस व्रत के द्वारा अपने पति को शीघ्र प्राप्त कर सकते हैं शिशु के दन्तजनक पीड़ा में भी इस व्रत के करने से पीड़ा दूर हो जाती है
उद्देश -आशा दसवीं का व्रत के करने से व्यक्ति की सभी आशाएं पूर्ण हो जाती हैं
तिथि – किसी भी मांस के शुक्ल पक्ष की दशमी
अनुयायी – हिंदू
प्रारंभ – महाभारत काल
उत्सव -इस दिन प्रातःकाल स्नान करके देवताओं की पूजा कर रात्रि में पुष्प अलग तथा चंदन आदि से 10 आशा देवियों की पूजा करनी चाहिए
आशा दशमी
हिंदू ग्रंथ में उल्लिखित एक व्रत संस्कार है यह व्रत किसी भी मांस के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आरंभ करना चाहिए यह वृक्ष एक वर्ष या 2 वर्ष के लिए करना चाहिए इस व्रत के करने वाले वृद्धि को अपने आंगन में दसों दिशाओं के चित्रों की पूजा करनी चाहिए आशा दसवीं काव्रत के करने से व्यक्ति की सभी आशाएं पूर्ण हो जाती है इसी व्रत को करने वालों यदि व्रत हो तो पूजा तब होनी चाहिए जब दशमी पर्व में हो इस व्रत को पूर्ण करने से कन्या श्रेष्ठ व प्राप्त करती है पति के यात्रा प्रवेश पर जाने और जल्दी लौट कर ना आने पर स्त्री इस व्रत के द्वारा अपने पति को शीघ्र प्राप्त कर सकती है शिशु के दांत दैनिक पीड़ा में भी इस व्रत के करने से पीड़ा दूर हो जाती है
आशा दशमी कथा 2024
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं पथ अब मैं आपसे आशा दशमी व्रत कथा है उसके विधान का वर्णन कर रहा हूं प्राचीन काल में निशानदेश में एक राजा राजा करते थे उनका नाम नाल था उनके भाई पुष्कर ने भूत में जब उन्हें पराजित कर दिया था उन्हें अपने भारत दमयंती के साथ राज्य से बाहर चले गए वह प्रतिदिन एक वंश दूसरे वन में भ्रम करते रहते थे केवल जल मात्र से अपना जीवन करते थे और जनसुन्य भयंकर वर्णों में घूमते रहते थे एक बार राजा निबंध पक्षियों का देखा उन्हें पकड़ने की इच्छा से राय जाने उनके ऊपर वस्त्र फहराया परंतु ऐसा भी वस्त्र को लेकर आकाश में उड़ गए इससे राजा बड़े दुखी हो गए मैं दमयंती हो गहरी निंद्रामें देखकर उसे इस स्थिति में छोड़कर चले गएजब दमयंती निंजा से जागी तो उसने देखा की नाल वहां नहीं है नल को न पाकर वह उसे घर वन में हाकर करते हुए रोने लगी महान दुख और शौक से प्राप्त होकर वर्णन के दर्शनों की इच्छा इधर-उधर भटकने लगी इस प्रकार कई दिन बीत गए और भटकते हुए एचडी देश में पहुंची वहां उन्नत सी रहने लगी छोटे-छोटे शिशु और को तू कवच गहरी रहते थे मनुष्यों से गिरी हुई उसे तेरी देश के राजा की माता ने देखा उसे समय दमयंती चंद्रमा की रेखा के समान भूमि पर पड़ी हुई थी उसका मुख मंडल प्रकाशित था राज्य माता ने उसे अपने भवन में बुलाकर पूछा तुम कौन हो इस पर दमयंती ने ललित होते हुएकाम में विवाहित स्त्रियों मैं किसी के चरण धोती हूं और ना किसी का उचित भोजन करती हूं यहां रहते हुए कोई मुझे प्राप्त करेगा तो वह आपके द्वारा दंड नहीं होगा देवी इस प्रतिज्ञा के साथ में यहां रह सकती हूं राजमाता ने कहा ठीक है ऐसा ही होगा तब दमयंती ने वहां रहना स्वीकार किया और इसी प्रकार कुछ समय व्यतीत और फिर एक ब्राह्मण दमयंती को उसके माता-पिता के घर ले आया के के के के के के के के के के के के के के के के के के किंतु माता-पिता तथा भाइयों का स्नेह पाने पर भी पति के बिना वह अत्यंत दुखी रहती थी एक बार दमयंती ने एक शेर ब्राह्मण को बुलाकर उससे पूछा है ब्राह्मण देवता आप कोई ऐसा दाने व्रत बताएं जिससे मेरा पति मुझे प्राप्त हो जाए इस पर उसे बुद्धिमान ब्राह्मण का पत्र हेतु मनुवंचित सिद्धांत करने वाले आशा दशमी व्रत को करोबेटा उसे दम नमक पुरोहित ब्राह्मणों के द्वारा ऐसे कहे जाने पर आशा दशमी व्रत का अनुष्ठान किया उसे मृत के प्रभाव से दमयंती ने अपने पति को पूर्ण प्राप्त किया
आशा दशमी लाभ और महत्व..
भगवान श्री कृष्ण के मुख से इस कथा को सुनकर धर्मराज युधिष्ट ने कहा है गोविंद यह आशा दशमी व्रत किस प्रकार कैसे किया जाता है तथा इसके क्या लाभ है आप इसे बताएं युधिष्ट की बात सुनकर श्री कृष्ण बोले हैं राजन इस व्रत के प्रभाव से राज पुत्र अपना राज्य कृषि खेती बाड़ी व्यापार में लाभ उतरती पुत्र तथा मानव धर्म अर्थ और काम की सिद्धि प्राप्त करते हैं कन्या श्रेष्ठ द्वार पर आशा दसमी व्रत से ब्राह्मण निबंध कर लेता है असाध्य रोगों से पीड़ित रोगीसे मुक्त हो जाता है और पति के यात्रा प्रवास पर जाने पर और जल्दी ना आने पर स्त्री इस व्रत के द्वारा अपने पति को शीघ्र प्राप्त कर सकती है शिशु के दांत दैनिक प्रेरणा में भी इस व्रत से पीड़ा दूर हो जाती है और कष्ट नहीं होताइसी प्रकार अन्य कार्यों की सिद्धि के लिए बेहद शुभ और लाभकारी माना जाता है जब भी इस व्रत को करते हैं तो कष्ट करें उसकी निमित्त के लिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से ही करना चाहिए
आशा दशमी व्रत विधान ..
आशा दसमी यह व्रत किसी भी मांस के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है इस दिन प्रातःकाल स्नान करके देवताओं की पूजा कर रात्रि में पुष्प अंक तथा चंदन आदि में 10 आशा देवियों की पूजा करनी चाहिएघर के आंगन में जोर से अथवा प्रतिष्ठा तक से पूवादीदस और दिशाओं के अधिपतियों की प्रतिमाओं को उनके वाहन तथा अस्त्र शस्त्रों से सूजार्जित कर उन्हें ही इंद्र आदि दिशा देवियों के रूप में मानकर पूजन करना चाहिए सबको घर्टवाने में पृथक पृथक सेवक तथा ऋतु फल आदि समाप्ति करना चाहिए इसके अंदर अपने कार्य घोषित के लिए इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए
इस प्रकार विधि बात पूजा कर ब्राह्मणों को दक्षिण प्रदान करें प्रसाद ग्रहण करना चाहिए इसी क्रम से प्रत्येक मार्च में इनवाइट को वर्णन जब तक अपने मनोरथ पूर्ण ना हो जाए तब तक इस व्रत को करना चाहिए अनंतर ना हो जाए उद्यापन करना चाहिए उद्यापन में आशा देवियों की सोने चांदी अथवा पुस्तकों से प्रतिमा बनाकर के आंगन में उनकी पूजा करनी चाहिए10 आशा देवियों से अभीष्ट कामनाओं की सिद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए साथ ही नक्षत्रग्रहतारोंग्रहनक्षत्रकाभूत प्रेतविनायकों से भी अभीष्ट सिद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए पुष्प फल धूप गढ़ वस्त्र आदि से उनकी प्रार्थना करनी थी सुहागिन स्त्रियों का नृत्य गीत आदि के द्वारा राष्ट्र जागरण करना चाहिए प्रातकाल विधान ब्राह्मण को सब कुछ पूंजी निवेदित कर देना चाहिए और उन्हें प्रणाम कर समय यात्रा ना करनी चाहिए अनंतर बंदूकन एवं मित्रों के साथ प्रश्न मन से भोजन करना चाहिए श्री कृष्ण कहते हैं यह पाठ जो इस आशा दशमी व्रत को सदा पूरा करता है उसकी सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं यह व्रत इसरो के लिए विशेष कर है
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