देश के कई हिस्सों में आज भी जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। पंचांग के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। द्वापर युग में भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। इन्होंने मथुरा और गोकुल में कंस समेत कई राक्षसों का वध किया था। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार तब से लेकर अब तक चला आ रहा है। हिंदू धर्म में इस त्योहार को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सभी मंदिरों में भव्य आयोजन किया जाता है। लेकिन इस बार देश और दुनिया में कोरोना महामारी के चलते सभी मंदिरों में कृष्ण जन्माष्टमी बिना भक्तों के मनाई जा रही है। भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी। युद्ध में ही उन्होंने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। आज पूरी दुनिया गीता के उपदेशों को बड़े ही ध्यान से पढ़ते और समझते हैं। कृष्ण जन्माष्मी के अवसर पर लोग अपने आसपास के मंदिरों और घरों में कृष्ण की पालकी सजाते हैं और उनकी विधिवत पूजा अर्चना और उनकी आरती करते हैं। आइए जानते हैं

श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।
जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।
टेर सुन दीन दुखारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की