केवल भगवान के राम का नाम जाप करने से कुछ फायदा नहीं होगा। क्योंकि असली भक्ति शास्त्र अनुसार होती है। जिस मंत्र का उल्लेख हमारे पवित्र शास्त्र करते हैं उस की भक्ति करने से ही हमें लाभ प्राप्त हो सकते हैं । मूल मंत्र द्वारा ही परम गति को प्राप्त किया जा सकता है। जैसा कि गीता जी में लिखा है
ओम् तत् सत् इति निर्देशः ब्रम्हणः त्रिविधः स्मृतः।
(गीता अ.17.23)
सारी बाते संत शिरोमणि कबीर साहेब जी, परम संत नानकदेव जी एवं पवित्र ग्रन्थ गीता जी से भी प्रमाणित है।
परमात्मा प्राप्त संत नामदेवजी ने तीन नामों का भेद इस तरह दिया है –
नामा छिपा ओम तारी, पीछे सोहम् भेद विचारी।
सार शब्द पाया जद लोई, आवागवन बहुरि न होई।।
दो अक्षर के नाम को भी आदरणीय गरीबदास जी साहेब ने स्पष्ट किया है –
राम नाम जपकर थिर होई
ओम् – तत् (सांकेतिक) मन्त्र दोई।
फिर लिखा है –
ओम् – तत् (सांकेतिक) सार संदेशा,
मानों सतगुरु की उपदेशा।
इसी को कबीर साहेबजी ने फिर स्पष्ट किया है –
कह कबीर, सुनो धर्मदाशा, ओम् – तत् शब्द प्रकाशा।।
नानकदेवजी ने दो अक्षर के मन्त्र को प्राणसंगली में खोला है-
नामों में ना ओम् – तत् है, किलविष कटै ताहि।
कबीर, सतगुरु सो सतनाम दृढ़ावे,
और गुरु कोई काम न आवे।
ओम् + तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम बनता है। जो दो अक्षर का होता है।सतनाम में ओम् के साथ एक अक्षर का एक और मन्त्र होता है जिसका भेद आदरणीय नानकदेवजी ने
“एक ओंकार” सतनाम कहकर दिया है। जिसका सीधा सा अर्थ बनता है ओम् के साथ (एक) एक अक्षर का एक अन्य मन्त्र जुड़कर सतनाम बनता है जिसे पवित्र सिख समाज भी आजतक नहीं समझकर सतनाम सतनाम जपने में लगे है।
हमारे पवित्र शास्त्र को ना समझने के कारण लोग मनमानी साधना कर रहे हैं । मनमाना जाप कर रहे हैं । जिसका कुछ भी लाभ नहीं है । लाभ तो केवल वास्तविक मंत्र द्वारा ही हो सकता है । और वह वास्तविक मंतर उसका रहस्य केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। क्योंकि जो मंत्र हमारी पवित्र शास्त्रों में दिए गए हैं वह संकेतिक है। उसका अर्थ एक तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। और वह तत्वदर्शी संत कौन है उसकी पहचान गीता अध्याय 15 में श्लोक एक मे बताया गया है कि जो उल्टे लटके हुए वृक्ष पर अपना ज्ञान बताएगा अर्थात जो उसके विभिन्न भागों को अलग-अलग बता देगा वह तत्वदर्शी संत होगा । वर्तमान समय में वह तत्वदर्शी संत कौन है