गरुड़ पुराण पहला अध्याय ..
जो प्राणी सदा पाप पारायण है दया और धर्म से राहतजो दुष्ट लोगों की संगति में रहते हैं सात शास्त्रऔर शक्ति से विमुख है जो अपने को स्वीकार प्रतिष्ठा मानते हैं तथा धन और मां के मंच से चोर है आसुरी शक्ति को प्राप्तहै तथा देवी संपत्ति से रहितजिन का चित्र अनेक विषयों में आसक्त होने से ब्रांच है जो मुंह के जाल में फंसे हैं और कामनाओं के भोग में ही लगे हैं ऐसे व्यक्ति पवित्र नरक में गिरते हैं जो लोग ज्ञानशील हैं वह परम गति को प्राप्त होता है पापी मनुष्य दुख पूर्वक यम यातना प्राप्त करते हैं पापियों को इस श्लोक में जैसे दुख की प्राप्ति होती है मृत्युके बाद वह जैसी यम यातना को प्राप्त होते हैं उसे सुनो
वह रोजी हो जाता है उसे मंदाकिनी हो जाती है और उसका आहार तथा उसकी सभी चेष्टाए कब हो जाती है प्राण वायु के बाहर निकलते समय आंखें उलट जाती है नदिया कब से रुक जाती है उसे खांसी और सांस लेने में करना पड़ता है तथा कंठ से घुर -घुर से शब्द निकलने लगते हैं
चिंता मग्न सजनों से घिरा हुआ तथा सोया हुआ वह भक्ति काल पास के वशीभूत होने के कारण बुलाने पर भी नहीं बोलना इस प्रकार कुटुंब के भरण पोषण में ही निरंतर लगा रहने वाला अजितेंद्र व्यक्ति अंत में रोटी बिखरतेबंदूकन के बीच उत्तर वेदना से संज्ञा सुनने होकर मर जाता है यह गरुण उसे अंतिम क्षण में प्राणी को व्यापक दिव्या दृष्टि प्राप्त हो जाती है जिससे वह लोग परलोक को एकत्र देखने लगता है अतः चकित होकर वह कुछ भी नहीं कहना चाहता कि हम दूसरों के समीप आने पर भी सभी इंद्राय विकल हो जाती है चेतना जड़ी बूट हो जाती और प्राण चलायामान हो जाते हैं
अतुल काल में प्राण वायु के अपने स्थान से चल देने पर एक क्षण भी एक क्लब के समान प्रतीत होता है और सो बिच्छू के डंक मारने जैसी पीड़ा होती है वैसा पीड़ा का उसे समय उसे अनुभव होने लगता हैऔर उसकी बुकभर जाता हैपापी जनों के से निकलते हैं
उसे समय दोनों हाथों में पास और दान धरण की है नग्न दातों को कट काटते हुए क्रोध पूर्ण नेत्र वाले एवं के दो भयंकर दूध समीप में आते हैं उनके केस ऊपर की ओर उठ होते हैं वह के समान काले होते हैं और तेरे मुख वाले हैं तथा उनके भांति होती है उन्हें देखकर भयभीत हृदय वाला मूत्र का विसर्जन करने लगता है हां अपनेपांच भौतिक शरीर से हाय-हाय करते हुए निकलता हुआ तथा यमदूतों के द्वारा पकड़ा हुआ वह मां का पुरुष अपने घर को देखा हुआ कि हम दूधों के द्वारा याद ना देश है ढक करके गले में बलपूर्वक परसों से बांधकर सुधार हमारी आत्मा के लिए उसे प्रकार ले जाया जाता है जिस प्रकार राज पुरुष सुधारने अपराधी को ले जाते हैं इस प्रकार ले जाया जाते हुए उसे जीव कोयम के दूध टार्जन करके डरते हैं और नाल्को केपूर्ण वर्णन करते हैं सुनते हैं
यमदूत कहते हैं रे दोस्त शीघ्र चल तुम यमलोक जाओगे आज तुम्हें हम सब कुंभी पार्क आदि लड़कों में श्री घी ले जाएंगे इस प्रकार हम भूतों की वाणी तथा बंदूक सुनता हुआ राजीव जोर से हंकार करके विलाप करता है और यह भूतों के द्वारा प्रतीत किया जाता है या हम दोनों के ताजा नाम से उसका हृदय वेतन हो जाता है वह काटने लगता है रास्ते में कुत्ते काटते हैं और अपने पापा का इस्तेमाल करता हुआ वह प्रीति दिव्या मन में चलता है वह कृपया से प्रेरित होकर सूर्य दबाओगी और वायु के झोंकों से प्राप्त होते हुए यमदूतों के द्वारा पेट पर कूड़े से पीटे जाते हैं उसे जीव को तपती हुई बालुका से पूर्व तथा विश्राम रहित और जल रहीम मार्ग पर असमर्थ होते हुए भी बड़ी कठिनाई से चलना पड़ता है ठक्कर जगह-जगह गिरता और मूर्छित होता हुआ वह पूर्ण पापी जनों की भांतिअंधकार पूर्ण यमलोक में ले जाया जाता है
दो अथवा तीन मुलाकात में वह मनुष्य वहां पहुंचा या जाता है और यह दूध उसे घोर नरक यात्राओं को दिखाते हैं मूरत मात्रा में हमको यात्राओं को देखकर वह व्यक्ति हम की आगे से आकाश पूर्ण श्लोक मनुष्य लोग में चला जाता है मनुष्य लोक में रखे आबादी वासना से बढ़ वह जीव दया में प्रवेश होने की इच्छा रखता है किंतु यमदूतों द्वारा पड़कर पास में बांध दिए जाने से भूख और प्यास से अत्यंत पीड़ित होकर रोता है
सैक्रो करोड़ कल्पवि जाने पर भी बिना भोग किए कर्म फल का नाश नहीं होता और जब तक वह पापी जीव आत्माओं को भोग नहीं कर लेता तब तक उसे मनुष्य शरीर भी प्राप्त नहीं होता है पक्षी इसलिए पुत्र को चाहिए कि वह 10 दिनों तक प्रतिदिन पिंडदान करें वह पिंड प्रतिदिन चार भागों में विभक्त होते हैं उनमें दो भाग तो पेट के दिन के पांच भूतों की दृष्टि के लिए होता है तीसरा भाग यमदूतों को प्राप्त होता है और चौथा भाग में उसे जीप का आहार प्राप्त होता है 9 रात दोनों में पिंड को प्राप्त करके प्रेत का शरीर बन जाता है और 10वें दिन उसमें बाल की प्राप्त व्यक्ति के देखकर जल जाने पर पिंड के द्वारा पूर्ण एक हाथ लंबा शरीर प्राप्त होता है जिसके द्वारा वह प्राणी हम लोग के रास्ते पर भोक्ता है
पहले दिन जो पिंड दिया जाता है उससे उसका सर बनता है दूसरे दिन के पेट से गिरवा गर्दन और स्कंद कंधे तथा तीसरे पिंड से हृदय बनता है चौथे पी से पृष्ठ भाग पीठ पांचवें से नाही चट तथा सातवें पी से क्रिसमस कट्टी कमर और गौहर उत्पन्न होते हैं और 9 जानू घुटना तथा पर बंद है इस प्रकार 9 बिंदु से को प्राप्त करके 10 में पिंड से इसकी सुविधा और ताशा भूख प्यार से दोनों से जागृत होती है इस पंडित शरीर कोप्राप्त करके भूख और प्यास से पंडितों के द्वारा बंदर की तरह बंद हुआ वह प्राणी अकेला इस अंबर में जाता हैमार्ग में मिलने वाली वेतन को छोड़कर यमलोक के मार्ग की दूरी की प्रमाण 86 हजार योजना है
पहले दिन जो पिंड दिया जाता है उससे उसका सर बनता है दूसरे दिन के पेट से गिरवा गर्दन और स्कंद कंधे तथा तीसरे पिंड से हृदय बनता है चौथे पी से पृष्ठ भाग पीठ पांचवें से नाही चट तथा सातवें पी से क्रिसमस कट्टी कमर और गौहर उत्पन्न होते हैं और 9 जानू घुटना तथा पर बंद है इस प्रकार 9 बिंदु से को प्राप्त करके 10 में पिंड से इसकी सुविधा और ताशा भूख प्यार से दोनों से जागृत होती है इस पंडित शरीर कोप्राप्त करके भूख और प्यास से पंडितों के द्वारा बंदर की तरह बंद हुआ वह प्राणी अकेला इस अंबर में जाता हैमार्ग में मिलने वाली वेतन को छोड़कर यमलोक के मार्ग की दूरी की प्रमाण 86 हजार योजना है
इस प्रकार गरुड़ पुराण कापहला अध्याय पापियों के साथइस लोक तथा परलोकके दुख कासमाप्त हुआ पहला अध्याय..
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