करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद चौथ माता और चंद्रदेव की पूजा करने का विधान है। रात को चंद्रोदय होने के बाद अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा जाता है
करवा चौथ का महत्व
हिंदू पंचांग में हर महीने दो पक्ष होते हैं शुक्ल और कृष्ण पक्ष। इन दोनों ही पक्षों में दो चतुर्थी तिथियां आती हैं, जिसे चौथ के नाम से जाना जाता है। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है क्योंकि इसके स्वामी प्रथम पूज्य गणेश जी हैं। चतुर्थी तिथि पर भगवान गणपति की पूजा-आराधना करने पर सभी तरह के दुखों और परेशानियों का नाश होता है। करवा चौथ के व्रत में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु, अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं
करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद चौथ माता और चंद्रदेव की पूजा करने का विधान है। रात को चंद्रोदय होने के बाद अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा जाता है। करवा चौथ पर महिलाएं 16 श्रृंगार करते हुए करवा चौथ माता की कथा सुनती हैं। बिना कथा सुने या पढ़े यह व्रत पूरा नहीं माना जाता है।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
करवा चौथ के त्योहार को लेकर एक ऐसी मान्यता है कि जब देवताओं ओर दानवों के बीच युद्ध हो रहा था तब ब्रह्रााजी ने सभी देवताओं की पत्नियों को कहा था कि अपने पति की युद्ध में विजय और सुरक्षा के लिए व्रत रखें। तभी से करवा चौथ व्रत रखने की परांपरा चली आ रही है।

पौराणिक कथा के अनुसार करवा चौथ व्रत एक ब्राह्राण की कन्या वीरावती से संबंधित है। इंद्रप्रस्थ राज्य में एक वेद शर्मा और उनकी पत्नी लीलावती रहती हैं। इनके सात पुत्र और एक पुत्री थी, इस पुत्री का नाम वीरावती था। वीरावती का विवाह होने के बाद वह अपने ससुराल चली गई। एक बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को वीरावती अपने सभी सातों भाईयों से मिलने उनके घर आई थी। सभी भाईयों की पत्नियों ने इस दिन चौथ का व्रत रखा था। तब वीरावती ने भी यह व्रत रख लिया। वीरावती ने सुबह से बिना जल ग्रहण किए व्रत रखा, लेकिन भूख और प्यास वह सहन नहीं कर पा रही थी और चंद्रोदय से पहले ही बेहोश की मुद्रा में चली गई। सभी सातो भाईयों ने अपनी अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुःख हुआ। तब भाईयों ने एक पेड़ पर चढ़कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखों, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्ध्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा-बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
तब वीरावती ने अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विध्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।
वीरावती बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आर्शीवाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया।
करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा का महत्व
करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं दिन भर उपवास रखती हैं और शाम को करवा माता की पूजा करती हैं, फिर चंद्रमा के निकलने का इंतजार करती हैं। करवा चौथ पर चन्द्रमा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास कर शाम को चन्द्रमा निकलने के बाद ही अपना उपवास खोलती हैं। इस दिन चतुर्थी माता और गणेशजी की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि सौभाग्य,पुत्र,धन-धान्य,पति की रक्षा एवं संकट टालने के लिए चंद्रमा की पूजा की जाती है। करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा करने के पीछे एक दूसरी मान्यता भी है कि चंद्रमा औषधियों और मन के अधिपति देवता हैं। उसकी अमृत वर्षा करने वाली किरणें वनस्पतियों और मनुष्य के मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं।