अगर आप भी कन्या पूजन करना चाहते हैं और आपके आस पड़ोस में छोटी बच्चियां नहीं हैं तो कुछ उपायों को अपनाकर सफल कन्या पूजन करके अपने उपवास को पूरा कर सकते हैं
नौ दिवसीय देवी पर्व नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन कन्या पूजन का विधान है। जो लोग देवी पूजा करते हैं या नवरात्रि में उपवास करते हैं, कन्या पूजन से उनका व्रत पूरा माना जाता है। ऐसे में अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन किया जाता है, जिसमें नन्हीं बच्चियों को भोजन कराया जाता है और देवी की तरह उनकी पूजा की जाती है।

कन्या पूजन का मुख्य उद्देश्य मां दुर्गा के शक्ति स्वरूप के प्रति भक्ति अर्पित करना है और कन्याओं को देवी का प्रतीक माना जाता है क्योंकि वह शुद्धता और प्राकृतिक सौंदर्य के महत्व को दर्शाती हैं। इस पूजा के माध्यम से समाज में नारी शक्ति और सम्मान भी प्रचारित किया जाता है।
हालांकि अष्टमी-नवमी के दिन छोटी बच्चियों की अधिक मांग के कारण अक्सर कन्या पूजन के लिए मोहल्ले व सोसायटी में बालिकाएं नहीं मिल पाती हैं। ऐसे में सवाल होता है कि बिना कन्या के कन्या पूजन कैसे किया जाए। अगर आप भी कन्या पूजन करना चाहते हैं और आपके आस पड़ोस में छोटी बच्चियां नहीं हैं तो कुछ उपायों को अपनाकर सफल कन्या पूजन करके अपने उपवास को पूरा कर सकते हैं
मंदिर में कन्या पूजन
अगर आपके आस-पड़ोस में कोई कन्या न हो तो आप मंदिर या ऐसी किसी स्थान पर जा सकते हैं, जहां जरूरतमंद या गरीबों के बच्चे मिल जाएं। ऐसे स्थानों पर जाकर लड़कियों को भोजन कराएं और दान दक्षिणा देकर कन्या पूजन सम्पन्न करें
काम करने वालो के बच्चे
अक्सर लोग अपने परिवार, दोस्तों या पड़ोसियों के बच्चों को ही कन्या पूजन में आमंत्रित करते हैं। हालांकि कन्या तो देवी का स्वरूप है, जिसका धर्म, जाति या गरीब अमीर से कोई वास्ता नहीं। घर में काम करने वाली या खाना बनाने वाली मेड की बेटी, ड्राइवर के बच्चे, कॉलोनी के गार्ड या आपके लिए काम करने वाले गरीब कर्मचारियों के बच्चों को अनदेखा न करें। उनकी बेटियों का कन्या के तौर पर पूजन कर सकते हैं
बहू बेटियों का पूजन
वैसे तो छोटी बच्चियों को देवी का स्वरूप मानकर लोग कन्या पूजन में बिठाते हैं। लेकिन हर नारी ही देवी का प्रतीक है। घर की बहू गृहलक्ष्मी स्वरूपा, खाना बनाकर पेट भरने वाली मां अन्नपूर्णा स्वरूपा, आपकी इच्छाओं का ध्यान रखने वाली और प्रोत्साहित करने वाली बुआ या बहन सिद्धिदात्री स्वरूप में होती हैं। ऐसे में कन्या न होने पर घर की बहन, भतीजी, पत्नी या मां की पूजा उसी तरह करें, जैसे कन्या पूजन करते हैं। उनके पग धुलाकर चुनरी पहनावें और फिर भोजन कराकर दान दक्षिणा के साथ पैर छुएं। घर की बहू बेटियों और मां का सम्मान करने वाले पर यकीनन देवी मां का आर्शीवाद बना रहता है
भोग रख दें
कई बार अष्टमी नवमी में कन्याओं की मांग अधिक होने के कारण कन्या पूजन के लिए लड़कियां समय पर नहीं मिल पाती हैं। ऐसे में कन्या पूजन करते समय भोग बनाकर नवदुर्गा को अर्पित करें। ध्यान रखें कि भोग में ऐसी चीज रखें, जो जल्दी खराब होने वाली न हो, जैसे किशमिश, ड्राई फ्रूट्स, नारियल आदि। भोग के साथ ही जो भी दान का संकल्प हो, वो भी मां की प्रतिमा को समर्पित करें। बाद में भोग और दान की सामग्री को संभालकर रख दें। बाद में जब भी कोई कन्या मिले तो उसे भोग और दान का सामान देकर अपनी कन्या पूजन को संपन्न कर सकते हैं